
बीके शर्मा
प्रत्येक मनुष्य अपने अंदर की शक्ति और ज्ञान को बढ़ाते रहना चाहता है क्योंकि उसी की सामर्थ्य से वह अपने कार्य और अपने शरीर का ठीक प्रकार से निर्वाहन कर पाता है। शब्दकोश के अनुसार ‘शक्ति’ शब्द का तात्पर्य है कि वह साधन जिससे कोई भी व्यक्ति कुछ भी करने में समर्थ हो पाता है। जो देवी सभी प्राणियों में शक्ति रूप में स्थित है ‘या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता’ उन्हीं शक्तिस्वरूपा देवी की नौ मूर्तियां शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री को नवदुर्गा कहते हैं। उनके स्वरूपों की उपासना नवरात्रि के नौ दिनों में करते हैं। नवदुर्गा एक मां की तरह ही अपने शरण में आए दीनों और पीड़ितों की रक्षा करती हैं।
नवरात्र की प्रमुख तिथियां, जानें प्रतिपदा से दशहरा तक
देवी भागवत पुराण में आता है कि शक्ति से ही अनंत ब्रह्मांड का पालन-पोषण और संहार होता है। ब्रह्मा, शंकर, विष्णु, अग्नि, सूर्य, वरुण आदि देव भी उसी शक्ति से संपन्न होकर अपने-अपने कार्य करने में सक्षम होते हैं। भगवत्पाद श्री शंकराचार्य जी ने भी सौंदर्य लहरी ग्रंथ में कहा है कि भगवान शिव शक्ति से युक्त होकर ही सृष्टि का संचालन करने में समर्थ हो पाते हैं। भगवती पराशक्ति से युक्त न होने पर उनमें स्पंदन तक संभव नहीं है। सृष्टि स्थिति, संहार या संतुलन रखने में भी वे स्वयं समर्थ नहीं हैं क्योंकि प्रकृति के बिना पुरुष मात्र कल्पना है। ईश्वर भी अपनी माया शक्ति से ही इस सृष्टि को उत्पन्न करते हैं। शक्ति तत्व से ही यह समूचा ब्रह्मांड संचालित होता है। इसलिए नवरात्र में शक्ति स्वरूपिणी भगवती देवी की उपासना के माध्यम से ब्रह्मा की ही उपासना करते हैं क्योंकि माया शक्ति ब्रह्म से पृथक होकर नहीं रह सकतीं। जैसे अग्नि में उष्णता रहती है, सूर्य में किरणें रहती हैं और चंद्रमा में चंद्रिका रहती है, वैसे ही ब्रह्म में उसकी सहज शक्ति रहती है।
विद्या या ज्ञान रूप से वह प्राणियों की मुक्ति का कारण बनती है और अज्ञान या अविद्या के रूप में प्राणियों को मोह में डाल देती है। दुर्गा सप्तशती में आता है कि वह भगवती महामाया देवी ज्ञानियों के भी चित्त को बलपूर्वक खींचकर मोह में डाल देती हैं। गीता में भी भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि मेरी यह त्रिगुणमयी माया अत्यंत अद्भुत है,पर जो पुरुष केवल मुझे ही निरंतर भजते हैं वे इस माया को लांघ जाते हैं, यानी संसार सागर से तर जाते हैं।
नवरात्रि दुर्गा पूजा के लिए जरूरी सामग्री, ऐसे सजाएं माता की चौकी
नवरात्र में रात्रि शब्द अंधकार, अज्ञान, तमोगुण या मोह वगैरह को प्रदर्शित करता है। इसलिए मनुष्य अपने अज्ञान या मोह को दूर करने के लिए भी भगवती की नवरात्र के दिनों में विशेष रूप से उपासना करता है जिससे वह ज्ञान रूपी दीपक से अज्ञान रूपी अंधकार को अपने जीवन से दूर कर सके। संपूर्ण देवताओं के शरीर से प्रकट हुए तेज से ही कल्याणमयी देवी का आविर्भाव हुआ है और जिस प्रकार से देवी ने महिषासुर आदि असुरों का विनाश करके देवताओं को उनका उचित स्थान प्रदान कराया उसी प्रकार वह मनुष्यों की उपासना पर उनके दुर्गुण वगैरह आसुरी भाव या संपदा को दूर करके उनमें दैवी संपदा या अच्छे गुणों की स्थापना करती हैं।
देवी सूक्त के अनुसार भगवती देवी सब प्राणियों में बुद्धि रूप से, शक्ति रूप से, शांति रूप से, श्रद्धा रूप से, निद्रा रूप से, क्षुधा रूप से, क्षमा रूप से और मातृ आदि रूपों से स्थित हैं और सब प्रकार का मंगल प्रदान करने वाली कल्याण दायिनी सब पुरुषार्थों को सिद्ध करने वाली शरणागत वत्सला हैं।