Starlink of Elon Musk gets into controversy even before start of Indian Operation

एलन मस्क की सैटेलाइट से इंटरनेट सेवा प्रदान करने वाली कंपनी स्टारलिंक भारत में काम शुरू करने से पहले ही विवादों में घिर गई है। कंपनी के ऊपर भारतीयों को ठगने के गंभीर आरोप लगाए गए हैं।

दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति (Richest Person of World) एलन मस्क (Elon Musk) की कंपनी स्टारलिंक (Starlink) को भारत में कारोबार शुरू करने से पहले तगड़ा झटका लगा है। कंपनी के ऊपर एक एनजीओ ने भारतीओं को ठगने का आरोप लगाया है। यह आरोप भारत में कारोबार शुरू करने की स्टारलिंक की घोषणा के अगले ही दिन लगा है।

भारत में बुकिंग शुरू कर चुकी है Starlink

एलन मस्क की कंपनी स्टारलिंक इंटरनेट सर्विसेज (Starlink Internet Services) सैटेलाइट से इंटरनेट सेवा प्रदान करती है। कंपनी इसके लिए ग्राहकों को रिफंडेबल जमा लेकर डिवाइस देती है। भारत में कंपनी को अगले साल से सेवा प्रदान करने की उम्मीद है। हालांकि स्टारलिंक ने इसके लिए बुकिंग शुरू कर दी है।

बिना लाइसेंस के एडवांस लेने को Telecom Watchdog ने बताया नियमों का उल्लंघन

उपभोक्ताओं के हित में काम करने वाले एनजीओ टेलीकॉम वॉचडॉग (Telecom Watchdog) ने इसी बुकिंग को आधार बनाकर दूरसंचार विभाग (DoT) से शिकायत की है। एनजीओ का आरोप है कि स्टारलिंक को अभी भारत में लाइसेंस नहीं मिला है। इसके बाद भी एलन मस्क की कंपनी भारतीय लोगों से 99 डॉलर (करीब 7,500 रुपये) एडवांस ले रही है। यह भारतीयों को ठगने जैसा है और रिजर्व बैंक के प्रावधानों का गंभीर उल्लंघन है।

एलन मस्क ने 2015 में स्टारलिंक की शुरुआत की थी। उन्होंने कहा था कि स्टारलिंक का उद्देश्य दुनिया के हर कोने में तेज इंटरनेट पहुंचाना है।

समुद्र की तलहटी में बिछाये केबल से चलता है पारंपरिक इंटरनेट

अभी आप जो इंटरनेट यूज करते हैं, वह केबल के जरिए दुनिया के एक कोने से दूसरे कोने में डेटा पहुंचाता है। इसके लिए इंटरनेट सेवा प्रदान करने वाली कंपनियां समुद्र और महासागरों की तलहटी में केबल बिछाकर एक महादेश से दूसरे महादेश को जोड़ती है। यह न सिर्फ भारी इंजीनियरिंग का काम होता है, बल्कि इसमें बहुत खर्च भी आता है। कई बार समुद्री हलचल या किसी मानवीय हादसे की वजह से ये केबल टूट भी जाते हैं, जिसके कारण दुनिया के कुछ हिस्से में इंटरनेट सेवाएं ठप हो जाती हैं।

42 हजार सैटेलाइट लांच करेगी Elon Musk की कंपनी

एलन मस्क की कंपनी पारंपरिक तरीके के बजाय नए तरीके से काम करती है। इसके लिए स्टारलिंक लो-ऑर्बिट सैटेलाइट का इस्तेमाल करती है। मस्क की स्पेस कंपनी स्पेसएक्स ने इसके लिए अभी तक करीब दो हजार छोटे सैटेलाइट लांच किए हैं। सूटकेस के आकार के ये सैटेलाइट पृथ्वी के लो-ऑर्बिट में चक्कर लगा रहे हैं। स्टारलिंक आने वाले समय में ऐसे 42 हजार सैटेलाइट ऑर्बिट में छोड़ने की तैयारी में है।

Starlink का विवादों से पुराना नाता

स्टारलिंक का यह प्रोजेक्ट शुरू से ही विवादों के घेरे में रहा है। ये सैटेलाइट खगोलशास्त्रियों के लिए मुसीबत साबित हो रहे हैं। रात के आसमान में ये सैटेलाइट अपनी चमक से खगोलशास्त्रियों की अंतरिक्ष की खोज में बाधा बन जाते हैं। इस विवाद के बाद स्टारलिंक ने अपने सैटेलाइट पर ऐसी कोटिंग करने की घोषणा की, जो चमक कम करेगा। हालांकि इससे कोई खास मदद मिल नहीं पाई है।

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Starlink के लिए मुश्किलें उत्पन्न कर सकता है 5G

स्टारलिंक का इंटरनेट अभी 50 एमबीपीएस से लेकर 150 एमबीपीएस तक की स्पीड दे रहा है। कंपनी का दावा है कि जब पर्याप्त सैटेलाइट ऑर्बिट में होंगे, तब स्पीड 300 एमबीपीएस तक पहुंच जाएगी। स्पीड के मामले में देखें तो 5जी स्टारलिंक के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है। हालांकि स्टारलिंक को 5जी के ऊपर इस बात की बढ़त मिलेगी कि उसे इंटरनेट सेवा देने के लिए टावर की जरूरत नहीं पड़ती है। स्टारलिंक की एक और खास बात है कि इसका इंटरनेट दुनिया के हर इलाके में बिना रुकावट के एक समान स्पीड पर पहुंच सकता है।