Cultural – धर्म के मार्ग पर चलने वालों के स्वभाव में नहीं आ सकता अभिमान

ख़बर सुनें

उधमपुर/जिब। कथावाचक सुभाष शास्त्री की ओर से जिब में पिछले सात दिनों से जारी श्रीमद्भागवत कथा का वीरवार को समापन कर दिया गया। इस अवसर पर हवन के बाद भंडारे का आयोजन किया गया। इसमें कोरोना एसओपी का पालन करते हुए काफी संख्या में स्थानीय व आसपास के क्षेत्रों से आए लोगों ने भाग लिया।
कथा वाचक संत शुभाष शास्त्री ने संगत को समझाया कि जिस किसी भी पुरुष में किसी चीज के कारण अभिमान है, समझ लो उसके कर्म अथवा काम अधर्म के आधार पर है। क्योंकि धर्म के मार्ग पर चलने वालों के स्वभाव में अभिमान आ ही नहीं सकता। देखो जीवित प्राणी में लचीलापन होता है और इसके विपरीत मुर्दा अकड़ा हुआ होता है, इसलिए अभिमान को त्यागना परम आवश्यक है।
उन्होंने कहा कि इतिहास में भी है कि रावण और सिकंदर सरीखे आतातायी जब इस धरती पर चलते थे, तो धरती कांपती थी। लेकिन असल बात यह है कि धरती कापंती नहीं, अपितु हंसती थी और कहती थी कि मेरे अंश के विस्तार होकर मुझे ही अकड़ दिखा रहे हो। चलो थोड़ी देर और पाप क्रियाओं में व्यस्त रहो और अंत में खाली हाथ मेरी ही गोदी में आना।
कथावाचक ने कहा कि सिकंदर विश्व विजेता और रावण, जिसने मृत्यु को भी सिरहाने बांध कर रखा था, वह दोनों जब मृत्यु को प्राप्त हुए, तो उनको इस धरती पर याद करने वाला भी कोई नहीं था। क्योंकि दोनों अति अभिमानी थे। क्या हुआ उनके इतने अभिमान का। जिसने भी अभिमान त्यागा, वह संत हो गया। ज्ञान यज्ञ का आयोजन दिवंगत रमेश चंद्र के परिवार की तरफ से किया गया था।
उन्होंने कहा कि मनुष्य के अभिमान का मुख्य कारण है इस मायावी संसार से जुड़ना। आपके जीवन में संसार का कोई दूसरा स्थान नहीं है और यदि आपके जीवन में कुछ मूल्यवान है तो वह है स्वयं का मूल्य। स्वयं की सत्ता से बढ़कर और दूसरी कोई सत्ता नहीं है और जो उसे पा लेता है, वह सब कुछ पा लेता है। इसलिए मानव जीवन और स्वयं को जानने का प्रयास करें।

उधमपुर/जिब। कथावाचक सुभाष शास्त्री की ओर से जिब में पिछले सात दिनों से जारी श्रीमद्भागवत कथा का वीरवार को समापन कर दिया गया। इस अवसर पर हवन के बाद भंडारे का आयोजन किया गया। इसमें कोरोना एसओपी का पालन करते हुए काफी संख्या में स्थानीय व आसपास के क्षेत्रों से आए लोगों ने भाग लिया।

कथा वाचक संत शुभाष शास्त्री ने संगत को समझाया कि जिस किसी भी पुरुष में किसी चीज के कारण अभिमान है, समझ लो उसके कर्म अथवा काम अधर्म के आधार पर है। क्योंकि धर्म के मार्ग पर चलने वालों के स्वभाव में अभिमान आ ही नहीं सकता। देखो जीवित प्राणी में लचीलापन होता है और इसके विपरीत मुर्दा अकड़ा हुआ होता है, इसलिए अभिमान को त्यागना परम आवश्यक है।

उन्होंने कहा कि इतिहास में भी है कि रावण और सिकंदर सरीखे आतातायी जब इस धरती पर चलते थे, तो धरती कांपती थी। लेकिन असल बात यह है कि धरती कापंती नहीं, अपितु हंसती थी और कहती थी कि मेरे अंश के विस्तार होकर मुझे ही अकड़ दिखा रहे हो। चलो थोड़ी देर और पाप क्रियाओं में व्यस्त रहो और अंत में खाली हाथ मेरी ही गोदी में आना।

कथावाचक ने कहा कि सिकंदर विश्व विजेता और रावण, जिसने मृत्यु को भी सिरहाने बांध कर रखा था, वह दोनों जब मृत्यु को प्राप्त हुए, तो उनको इस धरती पर याद करने वाला भी कोई नहीं था। क्योंकि दोनों अति अभिमानी थे। क्या हुआ उनके इतने अभिमान का। जिसने भी अभिमान त्यागा, वह संत हो गया। ज्ञान यज्ञ का आयोजन दिवंगत रमेश चंद्र के परिवार की तरफ से किया गया था।

उन्होंने कहा कि मनुष्य के अभिमान का मुख्य कारण है इस मायावी संसार से जुड़ना। आपके जीवन में संसार का कोई दूसरा स्थान नहीं है और यदि आपके जीवन में कुछ मूल्यवान है तो वह है स्वयं का मूल्य। स्वयं की सत्ता से बढ़कर और दूसरी कोई सत्ता नहीं है और जो उसे पा लेता है, वह सब कुछ पा लेता है। इसलिए मानव जीवन और स्वयं को जानने का प्रयास करें।