Art And Culture: This Time Too, Marginalized Artists – आर्ट एंड कल्चर : इस बार भी हाशिए पर रहे कलाकार

– बजट में भी कला संस्कृति की चर्चा अवश्य है, लेकिन हमेशा की तरह हाशिए पर ही।

 

विनोद अनुपम

कलाकारों की सीमा है। वे रंग, रेखाओं, ध्वनियों और मुद्राओं का अर्थ समझ सकते हैं, लेकिन बजट नहीं समझ सकते। गणित उनके स्वभाव में ही नहीं, उनकी आत्मा भाव के प्रति लालायित होती है। आमतौर पर कलाकारों में अमीर नहीं, बेहतर बनने की प्रतियोगिता देखी जाती है। जाहिर है एक ओर कला और कलाकार बजट को नजरअंदाज करते रहे, दूसरी ओर बजट कला को। कलाकारों के मौन ने उनकी जरूरतों का अहसास ही कभी किसी सरकार को नहीं होने दिया कि कला किसी सरकार की बजट में प्राथमिकता बन सके। आश्चर्य नहीं कि आम बजट में किसान, मजदूर, मध्यवर्ग, उद्योगपति सभी की सुविधाएं या असुविधाएं सुर्खियां बनती हैं, लेकिन कला और कलाकार कहीं हाशिए पर रह जाते हैं। शायद इसलिए कि जनतंत्र पर कहीं न कहीं प्रेशर ग्रुप हावी रहता है और सरकारों को कला संस्कृति निरर्थक लगने लगती है।

वर्ष 2021-22 के आम बजट में भी कला संस्कृति की चर्चा अवश्य है, लेकिन हमेशा की तरह हाशिए पर ही। स्वास्थ्य और शिक्षा के बजट की तुलना में 2687 करोड़ रुपए के कला संस्कृति के बजट को देखते हुए इसे सहज ही समझा जा सकता है। यह शायद आम बजट में सबसे कम हिस्सेदारी होगी। इस वर्ष अल्पसंख्यक मंत्रालय को भी इससे अधिक बजट मिला है। यह भी देखना दिलचस्प होगा कि यह पूरी राशि क्या कला संस्कृति मद में खर्च की जा सकेगी या बीते 2020-21 की तरह एक बड़ा भाग खर्च ही नहीं हो पाएगा। यह भी गौरतलब है कि इस वर्ष कला संस्कृति के बजट की लगभग आधी राशि 1042 करोड़ रुपए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को आवंटित है। यह एक आवश्यक खर्च है, भवनों के निर्माण के लिए भी 78.75 करोड रुपए आवश्यक है।

मंत्रालय के अधीनस्थ 6 कार्यालयों और विभिन्न अकादमियों जैसे 34 स्वायत्त निकायों की व्यवस्था भी आवश्यक है, लेकिन सवाल है कि कलाकारों का क्या, जो रात दिन कला संस्कृति को और भी बेहतर और भी सार्थक बनाने की दिशा में लगे हैं। विज्ञान भी मान रहा है कि कोरोनाकाल के डिप्रेशन से उबरने में कला की बड़ी भूमिका हो सकती है, लेकिन बजट में कला के प्रति यह गंभीरता नहीं देखी जा सकती।
(लेखक राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार प्राप्त कला समीक्षक हैं)



Budget 2021