Art And Culture – आर्ट एंड कल्चर : व्यवसाय नहीं, ये सिनेमा है, जानी!

‘हम मनोरंजन परोसते हैं’- यह कथन दरअसल असमर्थता की अस्वीकार्यता है, विडम्बना है

सुशील गोस्वामी, सदस्य, सीबीएफसी

‘राधे’ की रिलीज और घोर विफलता के बाद सुपरहिटता के दावे एक बार फिर इस घोर आश्चर्य का सबब हैं कि ये बॉलीवुडी लोग अपने ‘पैरलल वल्र्ड’ से निकलने को तैयार नहीं। चिर-परिचित घोषणा की जाती है कि यह फिल्म एक तहलका है। आइए, एक मायूस मुरीद की आवाज बन लघु विमर्श करते हैं… जाहिर है इतना भारी पैसा, बेहद लम्बा समय, महंगी स्टारकास्ट और फिर भारी-भरकम प्रचार बजट खर्च करने के बाद ऐसे ढिंढोरे पीटना बनता है, पर तभी कुछ प्रश्न भी उगते हैं जिनके उत्तर के बीज खोजना समाज और उसकी उम्मीदों के संदर्भ में आवश्यक है।

प्रश्नावली शुरू करते हैं। क्या बरसों से टिके बॉलीवुड के महासितारे दिमाग को रचनात्मक खुराक नहीं देते? हाल की ‘लक्ष्मी’ से लेकर ‘राधे’ तक कोई भी फिल्म देखिए आप, प्रश्न पूरे ढाई-तीन घंटे आपके जहन में उभरता रहेगा। फ्रेम-दर-फ्रेम डौलों के संग अपने चेहरे की झुर्रियों की चिंता करते ये जगमग स्टार क्या कहानी, प्रस्तुतीकरण, संगीत, फिल्म की ग्राह्यता, सामाजिक सरोकार-संदेश की सम्भावना इत्यादि को सूंघ नहीं पाते? यह विस्मय की बात नहीं? एक और प्रश्न यह है कि बॉलीवुड महान की कोई भी फिल्म किसी कोरियाई, इराकी, जापानी, स्पेनिश या अमरीकी फिल्म के बरअक्स कहां खड़ी होती है? इसके स्तर की किंचित चिंता, जरा-जरा फिक्रकिसे होगी? बड़े सितारों, निर्देशकीय प्रभुओं-देवों आदि की क्वालिटी व कंटेंट को लेकर जिम्मेदारी सर्वप्रमुख क्यों नहीं होनी चाहिए? क्यों उन्हें साउथ की फिल्मों का सस्तापन ही लुभाता है, जबकि ‘जलीकट्टू’ और ‘कर्णन’ भी साउथ में ही बनी है। भारत वह वृक्ष है जहां से तमाम पटकथाओं के पर्ण तोड़े गए हैं जिनसे वैश्विक स्तर की फिल्में हरी हुई हैं। अंतरराष्ट्रीय प्रगतिशील, संदेशात्मक सिनेमा की कौंध भी यकीनन बॉलीवुड के चश्मे के कांच को पार नहीं कर पाती है।

एक प्रश्न यह भी कि फिल्म बनाना व्यवसाय है यह बात निर्लज्जता से क्यों स्वीकार्य है? हमारी प्रतिनिधि फिल्में व बॉक्स-ऑफिस नामक शै सदैव चोली-दामन हैं। उत्कृष्ट स्क्रिप्ट, आला सिनेमाई ट्रीटमेंट, अभिनय के ऊंचे मापदंड, सामाजिक सरोकार, मौलिकता, विश्व स्तर को ले कर स्वस्थ प्रतियोगी भाव व मील का पत्थर आउट्पुट इत्यादि चीजें क्यों नहीं उनके मन-मस्तिष्क में गहरे पैठ जातीं? उनका रेडीमेड कथन ‘हम मनोरंजन परोसते हैं’ दरअसल कालजयी कृति रचने में उनकी असमर्थता की अस्वीकार्यता है, एक बड़ी विडम्बना है।