स्टोरी हाइलाइट्स
- पांच साल पहले टिश्यू कल्चर के जरिए लगाई गई खजूर की फसल
- टिश्यू कल्चर की मदद से उगे खजूर का नाम एडीपी-1 है
राजस्थान में चारों तरफ सिर्फ रेगिस्तान ही नजर आता है. ऐसे में यहां काजरी (CAZRI) जोधपुर ने बड़ा कारनामा कर दिखाया है. काजरी जोधपुर में खजूर की खेती की जा रही है. यहां करीब पांच साल पहले टिश्यू कल्चर के जरिए खजूर (Dates) की फसल लगाई गई थी, जो अब फार्म में लहरा रही है. इस कजूर का नाम एडीपी-1 है. एक पौधे से अस्सी से सौ किलो खजूर का उत्पादन लिया जा रहा है.
सबसे खास बात यह भी है कि यह खजूर खारे पानी में पैदा होती है जो शक्कर की तरह मीठा और उतना ही पौष्टिक भी होता है. काजरी जोधपुर में इस तकनीक पर काम कर रहे प्रधान वैज्ञानिक डॉ अखत सिंह का कहना है कि जोधपुर के अलावा बीकानेर क्षेत्र में भी इस खजूर की खेती की जा रही है.
उन्होंने बताया कि एक हेक्टेयर में ये खेती कर चार से पांच साल बाद प्रतिवर्ष पांच लाख रुपए तक की आमदनी की जा सकती है. यह खजूर बाजार में सौ रुपए किलो बिकता है. डॉ सिंह का कहना है कि काजरी के फार्म पर इस बार रिकार्ड एक पौधे से सौ किलो तक खजूर उतारा गया है. यह और बढ़ सकता था लेकिन, हाल के दिनों में आए तूफान और मौसम में हुए परिवर्तन से थोड़ी परेशानी हुई इसके अलावा लगातार लॉकडाउन रहने से फॉर्म की देखरेख भी प्रभावित हुई.
क्या है टिशू कल्चर?
जैव प्रौद्योगिकी (Bio Technology) के क्षेत्र में टिशू कल्चर पौधों के आनुवंशिक सुधार (genetic improvement) में सुधार लाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. इस तकनीक के उपयोग से पर्यावरण की कई समस्याओं को हल किया जाता है. पौधों में टिश्यू कल्चर एक ऐसी तकनीक है जिसमें किसी भी पौधे के ऊतक जैसे जड़, तना, फूल आदि को पोषक माध्यम से ऐसी जमीन में उगाया जाता है जो उपजाऊ नहीं होती है.
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