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भारतीय ऑटो क्षेत्र लगता है कि वाकई में काफी तेजी से ख्याति हासिल कर रहा है. एक तरफ जब सारी सुर्खियां फोर्ड के भारत छोड़ने पर केंद्रित हैं, प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव स्कीम को केंद्रीय कैबिनेट की मंजूरी से कोविड बाद की आर्थिक सुधार प्रक्रिया को तेज करने में मदद मिलेगी. सुस्त अर्थव्यवस्था को मौजूदा स्थिति से बाहर निकालने का नरेंद्र मोदी सरकार का प्रयास स्पेशल पर्पज व्हीकल के रूप में नेशनल मॉनिटाइज़ेशन पाइपलाइ की घोषणा के तौर पर सामने आया है, जिसके जरिये निष्क्रिय पड़े बुनियादी ढांचे की संपत्ति का मोनेटाइजेशन किया जाएगा.
ऑटोमोबाइल उद्योग के लिए पीएलआई योजना के तहत शुरू में करीब 57,000 करोड़ रुपये के परिव्यय का वादा किया गया था, लेकिन अब यह घटकर 26,000 करोड़ रुपये हो गया है, जो लगभग 50 प्रतिशत की कटौती है. 18,000 करोड़ रुपये की एडवांस्ड केमिस्ट्री सेल और 10,000 करोड़ रुपये के फास्टर एडाप्शन ऑफ मैन्युफैक्चरिंग ऑफ इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (एफएएमई) प्रोग्राम के साथ यह योजना भारत में पर्यावरण के अनुकूल वाहनों के उत्पादन में और तेजी लाएगी. खुशखबरी यह है कि मौजूदा ऑटो निर्माताओं के साथ ही इस क्षेत्र में उतरने के इच्छुक नए खिलाड़ी भी समान रूप से पीएलआई योजना का लाभ उठा सकते हैं.
ऑटो सेक्टर के साथ-साथ एक और महत्वपूर्ण सेक्टर टेलीकॉम उद्योग को राहत की सांस लेनी चाहिए. केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बहुत सारी उम्मीदें लगाए बैठे दूरसंचार क्षेत्र के लिए भी तमाम संरचनात्मक और प्रक्रियात्मक सुधारों की घोषणा की है.
सुधारों, पैकेज और लक्ष्य निर्धारण से जुड़े ये सभी कदम उत्पादन में वृद्धि और निवेश को प्रोत्साहन तो देंगे ही, इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि रोजगार के अवसरों को बढ़ाने के मुद्दे में भी कुछ समाधान निकलने की उम्मीद है. कुछ अहम राज्यों के चुनाव नजदीक हैं, ऐसे में रोजगार का वादा बहुत अहमियत रखता है.
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टेलीकॉम और ऑटोमोबाइल क्षेत्र में सुधार क्यों खास मायने रखता है
महामारी के कारण लॉकडाउन और आर्थिक मंदी के दौरान दूरसंचार क्षेत्र ने जो बेहद अहम भूमिका निभाई है, उसे देखते हुए यह सुधार की दिशा में बेहतर उपायों का हकदार है. मरीजों को ऑनलाइन सहायता, वर्क फ्रॉम होम, आवश्यक वस्तुओं की ऑनलाइन सप्लाई चेन और इन सबसे इतर सोशल डिस्टेंसिंग के समय में सोशल मीडिया के जरिये जुड़ाव बना रहना, यह सब कुछ इस क्षेत्र के प्रभावी तरीके से काम करने के कारण ही संभव हो पाया है.
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दूरसंचार उद्योग में एक व्यापक उपभोक्ता आधार तक पहुंचने की काफी अधिक संभावनाएं हैं. लेकिन इसके लिए मौजूदा नियामक ढांचे में रिफ्रेश बटन दबाए जाने की जरूरत है. इस क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) बढ़ने की गुंजाइश है. संरचनात्मक सुधारों के तहत दूरसंचार क्षेत्र में ऑटोमैटिक रूट से सौ प्रतिशत एफडीआई की अनुमति इसी का लाभ उठाने की कोशिश है. राजस्व गणना—गैर-दूरसंचार राजस्व को समायोजित सकल राजस्व (एजीआर) परिभाषा से बाहर करके—और ब्याज दरें का युक्तिकरण, पेनाल्टी, पेनाल्टी पर ब्याज, स्पेक्ट्रम उपयोग शुल्क (एसयूसी) हटाना और बैंक गारंटी (बीजी) प्रावधानों में छूट दूरसंचार क्षेत्र को लेकर मोदी सरकार की तरफ से उठाए गए कुछ साहसिक कदमों में शामिल है.
इन सुधारों से अर्थव्यवस्था में तब तक कोई खास बदलाव मुमकिन नहीं है जब तक दूरसंचार और ऑटोमोबाइल दोनों क्षेत्र अपनी कार्यप्रणाली को एकीकृत नहीं करते और इनोवेशन में सुधार नहीं करते. महामारी के कारण सबसे ज्यादा झटका ऑटो सेक्टर को लगा है और बिक्री में जबर्दस्त गिरावट आई है. कम से कम छह प्रमुख ऑटोमोबाइल निर्माताओं ने भारत छोड़ दिया है, जो दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा ऑटो उद्योग क्षेत्र है.
इसका तत्कालिक असर ऑटो कंपोनेंट सेक्टर में देखने को मिलेगा, जो मैन्युफैक्चरिंग, ट्रेड, निवेश और बिक्री के अवसरों के जरिए लाखों लोगों को रोजगार मुहैया कराता है. हालांकि, यह अभी स्पष्ट नहीं है कि उद्योग को पुनर्जीवित करने और इसका गौरवशाली अतीत लौटाने में सुधार प्रक्रिया कितनी असरदार साबित होगी.
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अलग-थगल रहकर कोई विकास नहीं होता
इसके अलावा, दूरसंचार और ऑटो उद्योग दोनों ही ऐसे क्षेत्र हैं जो मुख्यत: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) उद्योग में इनोवेटिव उत्पादों और प्रक्रियाओं के अनुसंधान एवं विकास पर निर्भर हैं. दुर्भाग्य से एआई उद्योग उपेक्षित क्षेत्रों में से एक बना हुआ है. एआई में इनोवेशन के लिए सरकारी और अर्ध-सरकारी एजेंसियों की तरफ से बड़े पैमाने पर टेक्नोलॉजी इनोवेशन, ट्रासंफर और वित्तीय निवेश की आवश्यकता होती है. भविष्य को ध्यान में रखकर सशक्त प्रौद्योगिकी और कुशल कार्यबल के निर्माण में सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों के उच्च शिक्षा संस्थानों (एचईआई) की भूमिका महत्वपूर्ण है. यह कहा जा सकता है कि सरकार-उद्योग-संस्थाओं का साझा इंटरफेस मौजूदा समय में खराब स्थिति में ही है.
हालिया सुधार प्रक्रिया और उद्योगों से संबंधित जो एक अन्य क्षेत्र है, वह है आउटर स्पेस का इस्तेमाल. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और एंट्रिक्स कॉर्पोरेशन लिमिटेड के अलावा सरकार ने न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (एनएसआईएल) और इंडियन नेशनल स्पेस प्रोमोशन एंड ऑथराइजेशन सेंटर (आईएन-स्पेस) बनाने की पहल की है. उम्मीद है कि दोनों साथ मिलकर वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए उपग्रहों के निर्माण और प्रक्षेपण के क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाने की सुविधा देंगे. इस पूरी कवायद में बहुत अधिक एकाग्रता, समर्पित टीम वर्क के साथ नीतिगत बदलावों, दिशा निर्धारण और अपेक्षित आउटपुट के नियमित मूल्यांकन की आवश्यकता होती है.
आर्थिक पुनरुद्धार सीधे तौर पर निवेश, नवाचार और उद्योगों के विकास के अनुकूल वातावरण तैयार करने से जुड़ा है. कारोबार में सुगमता, औद्योगिक उत्पादन और आर्थिक सुधारों को लगातार बदलती राजनीतिक प्रक्रिया, अड़ियल नौकरशाही, प्रशासनिक लालफीताशाही या अनिश्चित चुनावी संभावनाओं के बंधन में नहीं बांधना चाहिए. महामारी की चुनौतियों ने भी पर्याप्त मौके मुहैया कराएं हैं. उद्योगों, व्यापारिक समुदायों के साथ-साथ उपभोक्ताओं को भी उम्मीद है कि सरकार स्पीड ब्रेकर के बजाये तेजी से सुधारों वाला रास्ता अपनाएगी. यह एक स्फूर्त सरकार की जिम्मेदारी है कि अवसरों को हाथ से न जाने दे और 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के सपने को साकार करे.
(शेषाद्रि चारी ‘ऑर्गेनाइज़र’ के पूर्व संपादक हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)
( इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )
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